पुरा गोकुल हुआ अंधियारा ,
तू छलिया मुझे छोड़ क्यु गया ।
तेरी अंखियों ने गुलेल सा मारा,
तू छलिया मुझे छोड़ क्यु गया………
रोती है आज ये गइया ,
तरसती है देखने को मैया ।
तू तो था सबके आंख का तारा ,
प्रेम करके फिर किया क्यूं बेसहारा ।
तू छलिया मुझे छोड़ क्यु गया………
याद है तेरा वो गोपियों से लड़ना ,
झूठी बातो में भी तेरा अडना ।
अपनी मुरली की धुन से कर के दीवाना ,
झुठे तूने लूट लिया चैन हमारा ।
ओ छलिया तू मुझे छोड़ क्यु गया…….
आ रही याद तेरी आज बड़ी ,
मै तो रोने लगी खड़ी ही खड़ी ।
सुनी पड़ गई है आज हर गली ,
सुना है यमुना का वो किनारा ।
तू छलिया मुझे छोड़ क्यु गया ………….
पुरा गोकुल हुआ अंधियारा ,
तू छलिया मुझे छोड़ क्यु गया………
“काजल सोनी ”
बहुत सुंदर……………………………………
बहुत बहुत धन्यवाद आपका…. विजय जी ।
बेहद सुन्दर……….
बहुत बहुत धन्यवाद आपका शर्मा जी ।
ह्रदय के भावो को रचनात्मकता प्रदान करने का अच्छा कार्य …………अति सुन्दर !!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद निवातिया जी।
बड़े सुंदर भाव हैं काजल जी जो कान्हा से प्रेम करते हैं उन्हें कान्हा का वियोग सदा तड़पता है
बहुत बहुत आभार आपका किरण जी।
सुन्दर भक्तिमय रचना काजल जी !!
मीना जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत खूबसूरत …………….
रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका अभिषेक जी।
कृष्ण रहित विकल गोकुल का दृष्य आँखों में साकार हो गया। अच्छी रचना काजल जी।।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका विवेक जी।
बहुत सुंदर………………………रचना काजल जी
आपका बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी ।
बहुत ही अद्भुत सृजन। विरह गाथा का आद्वितीय वर्णन प्रस्तुत किया है आपने।
शीतलेश जी रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद आपका।