हिंदी में लिखना और पढना
आज की पीढ़ी भूल गयी
अवमूल्यन करके भाषा को
आगे बढ़ना सीख गयी.
अंग्रेजी की असर है छायी
वही इनकी विवशतायें है
भाव भरे सौन्दर्य ना जाने
जो हिंदी की क्षमतायें है.
होता नहीं है दर्द उन्हें कि
ये उनकी अपनी भाषा है
संस्कृति में वो रची बसी थी
क्यों बनी आज निराशा है.
सभ्यता के इस छोर पर
बेहतर इसका वजूद बने
भाषा की सामर्थ्य बोध से
इक सुन्दरतम स्वरुप बने.
कश्मीर की फिजाओं में महके
दक्षिण के जल तरंग में डोले
एक दिवस का उत्सव ना हो
हर दिन मुखर-प्रखर हो बोले.
है यही कामना अपनी
विश्व गांव की पहचान बने
देश के उन विकास पथ पर
एक अनुपम सा अभियान बने.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी —————————
बहुत ही सुंदर रचना.
बहुत खूबसूरत ………………….!!
वाह्ह्ह्ह्ह् बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया
सुन्दर रचना………………
आप बिलकुल सही कहती हैं……यह अभियान तभी बनेगा जब हम घर में …बोलचाल में भाषा का प्रयोग करें….. इस संकीर्णता को छोड़ कर की अंग्रेजी बोलने से पढ़े लिखे ज्यादा लगते… बहुत बहुत उत्तम …..
भाषा सभी सीखे पर सम्मान निज भाषा का छोड़कर नहीं।
आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद