बादल गरजता है
बिजलियॉ चमकती है
हीम का पत्थर टूटकर
विखर जाता है जहॉ तहॉ
और इस तरह
आकाश रो रोकर
धरती की प्यास बुझाती है
जीने के लिए अम्रित देती है
काश धरती के पाप को
धो लेता
इंसान के दर्द को
टो लेता
ये अनर्थ
जिसका अर्थ नहीं रहता
हैवानियत का हुडदंग
ईश्या क्रोध मोह-माया
लालच
सब के सब
दबे पॉव भाग जाते
शेष रह जाता
प्रेम
सहानुभूति सदविचार
इसके साथ रह जाता
सदभावना
छल कपट से दूर
चैन की सॉस लेता मानव
नहीं देना पडता घूस
नहीं होती काला बजारी
न चोरी से डर रहता
न खून से हाथ रंगा जाता
सिर्फ रह जाता सात रंग
जिससे हम खेलते होली
मनाते दीपावली
दशहरा ईद बकरीद
जाते गुरूद्वारा
गिरिजा घर
मंदिर मस्जिद
सब के सब
अपने रंग में मिश्रित हो जाते
अपने रिवाजों को मानते
सब के सब
आपस में मिल जाते
कर्म और मर्म को
पहचान लेते।
Writer Bindeshwar Prasad Sharma (Bindu)
D/O Birth 10.10.1963
Shivpuri jamuni chack Barh RS Patna (Bihar)
Pin Code 803214
Mobile No. 9661065930
हैवानियत का हुड़दंग बर्दास्त नहीं होता फिर भी इस देश में आजादी का अगर यही मतलब है तो गुलामी क्या बुरी थी. अगर आपने उसी सोच के लिए लिखा है जो मैं सोच रहा हूँ तो ह्रदय तो द्रवित हो गया देखकर.
Vijay jee- very very sorry with contacting with you. I will be sissy to another work , thank your sir. jee aapne hridayvidarak jo baat kahi hai main bhi dravit ho gaya.
बहुत ही गहरी सोच से लिखी आपने………. बहुत सुंदर……..
DER SE REPLY KE LIYE VERY VERY SORRY KAJALSONI JEE. THANK YOU.