Homeमीना भारद्वाज“पानी” “पानी” Meena Bhardwaj मीना भारद्वाज 14/09/2016 11 Comments जीव उत्पति का कारक है पानी । पंचभूत का आधार है पानी ।। इन्सान की आँखों की लाज है पानी । जीवों की प्यास बुझाता है पानी ।। तोड़ दे अपने बांध तो विनाश है पानी । कहीं आग बुझाता है तो कहीं आग लगाता है पानी ।। “मीना भारद्वाज” Tweet Pin It Related Posts हकीकत “फिर मिलते हैं” “वर्ण पिरामिड” About The Author meena29 I am a post graduate in Political Science and Hindi. My hobbies are reading, writing and visiting historical places. 11 Comments निवातियाँ डी. के. 14/09/2016 beautiful……………..so nice Meena ji. Reply Meena bhardwaj 14/09/2016 Thank you so much Nivatiya ji. Reply babucm 14/09/2016 दैव की तरह बहुत सुन्दर…….कहीं आग बुझाता है तो कहीं आग लगाता है पानी …..वाह क्या बात है…. Reply babucm 14/09/2016 मीनाजी… ऊपर सदैव पढियेगा…..मेरे रोकने से रुका नहीं ये….”स” को मेरे पास छोड़ के चला गया…हा हा हा…. Reply Meena bhardwaj 14/09/2016 शुक्रिया शर्मा जी !! कुछ दिन पूर्व आपकी रचना पर मेरे comment का ‘की’ मेरे पास ही रह गया था .आज आपने लिखा तब याद आया . Reply विजय कुमार सिंह 14/09/2016 बहुत सूंदर रचना. सत्य का वर्णन करती हुई. कहीं प्यास बुझाता है पानी तो कहीं आग लगाता है पानी. आग लगाता है पानी पर कल “कावेरी की आग” पोस्ट किया था मैंने. Reply Meena bhardwaj 14/09/2016 धन्यवाद विजय जी ! आपकी कुण्डलियाँ बहुत प्रभावी हैं .बहुत अच्छा लिखते हैं आप . Reply Kajalsoni 14/09/2016 सचमुच……. पानी के बिना जीवन ही संभव नहीं है ….. बहुत खूब । Reply Meena bhardwaj 14/09/2016 शुक्रिया काजल जी !! Reply Shishir "Madhukar" 14/09/2016 Well said in respect of present day water disputes. Reply Meena bhardwaj 14/09/2016 Thank you so much Shishir ji. Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
beautiful……………..so nice Meena ji.
Thank you so much Nivatiya ji.
दैव की तरह बहुत सुन्दर…….कहीं आग बुझाता है तो कहीं आग लगाता है पानी …..वाह क्या बात है….
मीनाजी… ऊपर सदैव पढियेगा…..मेरे रोकने से रुका नहीं ये….”स” को मेरे पास छोड़ के चला गया…हा हा हा….
शुक्रिया शर्मा जी !! कुछ दिन पूर्व आपकी रचना पर मेरे comment का ‘की’ मेरे पास ही रह गया था .आज आपने लिखा तब याद आया .
बहुत सूंदर रचना. सत्य का वर्णन करती हुई. कहीं प्यास बुझाता है पानी तो कहीं आग लगाता है पानी.
आग लगाता है पानी पर कल “कावेरी की आग” पोस्ट किया था मैंने.
धन्यवाद विजय जी ! आपकी कुण्डलियाँ बहुत प्रभावी हैं .बहुत अच्छा लिखते हैं आप .
सचमुच……. पानी के बिना जीवन ही संभव नहीं है ….. बहुत खूब ।
शुक्रिया काजल जी !!
Well said in respect of present day water disputes.
Thank you so much Shishir ji.