प्रेमी –
इश्क वो दर्द है ,
जो हर किसी को मिला नहीं ।
मेरे अल्फाज़ क्या कहें तुम्हें ,
कोई शिकवा न कोई गिला नहीं ।
लाख चाहुं मैं तुम्हें अपना बनाने की ,
कितने भी आँसू बहा लु ,
पर तू मुझे कैसे मिले,
खुदा ने जिसे मेरे नशीब में लिखा ही नहीं ।
प्रेमिका –
खुदा ने लिखा वो नशीब मेरा
जिसमें तुम नहीं ,
मिटा दु ऐसी जिदंगी को
तो भी मुझे गम नहीं ।
तेरी यादों को लेकर जो चलती हैं सांस मेरी ,
बिछड़ कर भी मिलेंगे हम,
यु मजबूरियों से न टूटेगी ये आस मेरी ।
मोहब्बत अमर हो जाती हैं उनकी ,
जो साथ नहीं होते ।
किस्मत की लकीरें तो उनकी भी बदल जाती हैं ,
जिनके हाथ नहीं होते । ।
“काजल सोनी “
बहुत खूबसूरत रचना …………………………………
कोई शिकवा न कोई गिला नहीं ।
उपरोक्त पंक्ति में से “न” को हटा दें क्योंकि दो बार प्रयोग नहीं होगा. और अगर कुछ टाइपिंग मिस्टेक ठीक कर सकें तो रचना बहुत सुंदर लगेगी. वैसे आपकी इस रचना का उत्तर मेरी निम्न रचना में है अगर पढ़ेगी तो आपको खुद ही पता चल जाएगा.
“प्यार के किस्से” पढ़ें .
बहुत बहुत धन्यवाद आपका विजय जी ।
Lovely write Kajal jee
बहुत बहुत आभार आपका मधुकर जी ।
Lovely feelings …………………..
बहुत बहुत धन्यवाद आपका निवातिया जी।
बहुत सुन्दर रचना काजल जी !!
रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका मीना जी।
हमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर…..पर अंत मुझे कुछ अलग सा लगा रचना से……..
बहुत बहुत धन्यवाद आपका शर्मा जी ।
चलिए अंत को सुधारने की कोशिश करती हूं ।