तेरी खुशियो को मेरी जान का सदका
हर मज़हब को मेरी सांस का सदका
कुर्बान किया जिस खुदा के लिए मुझे
उस खुदा को भी मेरे ईमान का सदका
मेरे टुकड़ो को पकाया तुमने
मेरे साँसों को उस पर वार दिया
कभी पुछा मेरा मज़हब क्या है
बस एक झटके में मुझे मार दिया
कही में हिन्दू निकला तो खुश हो जायेगा तू
कही मुस्लिम हुआ तोह दुःख मनाएगा मेरा तू
मुझे रौंद कर , मेरे आपनो से जुदा करने वाले
कभी आपनो की बलि भी चढ़ाएगा तू ……..
कभी मुझे अल्लाह के लिए हलाल किया
कभी देवी के लिए कट गया मेरा सर ..
मेरे मसीहा , मेरे भगवान् का मुझे इल्म नहीं
कौन है मेरा रखवाला यहाँ क्या बताएगा मुझे तू ….
बस बंद कर दो इस खुनी तमाशे को यंही
वरना बाद में पछतायेगा तू भी ……….
कभी बन कर में भी हिन्दू मुस्लिम यहाँ
खूनो की नदिया बहाता चला जाऊंगा युही …..
फिर किसी रोज़ मेरा जहाँ होगा सारा
तुझे मार कर मैं बनोउगा तेरी बोटी
तेरे खून से लिखूगां नयी कहानी में भी
तेरे लिए मौत बनकर नज़र आऊंगा कभी ….
तमन्ना जी कुछ ऐसे ही मेरे भी ख़यालात है , इंसानों ने यह क्या बना दिया है
क्या कभी बेजुबान जानवरों के बलि से खुदा या कोई देवी देवता खुस होंगें
वैसे कानून हैं बने पर सब व्यर्थ……बिलकुल आपसे सहमत हूँ….
बहुत ही सही कहा……….. बलि से सिर्फ जान जाती है ।
भगवान् कभी बलि से खुश नहीं होते ………..
शिक्षा और विज्ञान की तीव्र प्रगति की और अग्रसर मानव आज भी रूढ़ीवादी सोच का किस कदर गुलाम है ये मान्यताये इसका जीवंत उदहारण है …….बहुत अच्छा लिखा आपने ।।
लंबे अंतराल के बाद आगमन पर आपका स्वागत है. बहुत खूबसूरत ……………………..
बहुत सारी अच्छी रचनाएँ मैंने दी हैं आपकी नज़रों की प्रतीक्षा है.