पा ही लेंगे अपनी मंजील
चल के जरा-जरा,
संघर्ष करने से जो लडखडाये
‘कामयाबि’ वो क्या जाने….
हासील कर लेंगे हर खुशिया
गम भुलाके जरा-जरा,
रोने से जिसको फुरसत ना मिले
‘हसना’ वो क्या जाने……
कर लेंगे पुरे ख्वाब सच
मेहनत कर जरा-जरा
मेहनत से जो कतराये
‘सच्चे ख्वाब’ वो क्या जाने…….
भर देती नन्ही बुंद भी
सागर को जरा-जरा,
सुविधाओ के मंच पर बसा
‘संघर्ष’ वो क्या जाने……
मुस्काहट के पिछे छिप जाता दर्द
सबको दिखता हरा-भरा,
ना महसुस किया दर्द किसीका
‘गम’ वो क्या जाने…..
हर वो, जो दिखे चमकीला-सुनहरा
नही होता सोना खरा,
दिखावट पे जो इतराए
‘सच्चाई’ वो क्या जाऩे…..
हर दिन मरता किसी भय से
औ’ जिता डरा-डरा,
‘भयंकर’ है दुनिया उसके लिए
‘मस्ती’ वो क्या जाने…….
हंसराज केरेकार ‘राजहंस’
Sundar Kavita Hansraj Ji
सुंदर प्रस्तुति ………
टंकण की गलतियां सुधार लेना…..खूबसूरत लिखा है आपने…..
बहुत बढ़िया सोच आपकी………….. सुंदर ………..
बहुत खुबसूरत ।।
सुंदर रचना……………. ……………………..