आज सोचता हूँ क्यों मुझसे, अपने सारे रूठ गए
अपनों को मानाने की जिद्द में ही, अपने मुझसे रूठ गए
आज पास है सब कुछ मेरे, फिर भी कमी सी लगती है
जिंदगी की दौड़ में ना जाने कब, अपने पीछे छूट गए
आज सोचता हूँ क्यों मुझसे, अपने सारे रूठ गए
काश रिश्तो को अपने, मैंने संभाला होता
काश कभी कुछ वक़्त, अपनों के लिए निकला होता
तो आज ना होता यूँ तनहा, अरमान मेरे लुट गए
अपनों को मानाने की जिद्द में ही, अपने मुझसे रूठ गए
आज सोचता हूँ क्यों मुझसे, अपने सारे रूठ गए
ना करना तुम भूल कभी ऐसी, साथ में अपनों के रहना
आज नहीं कुछ और है कहना, आज है बस इतना कहना
आज है जाना रिश्तो को जब, रिश्ते सारे टूट गए…
अपनों को मानाने की जिद्द में ही, अपने मुझसे रूठ गए
विवेक कुमार शर्मा
विवेक जी बेहतरीन………………….
Bahut Bahut Dhanyawaad aapka surendra ji….
बहुत खूबसूरत………..
Dhanyawad babu ji…
अति सुन्दर ……………
dhanyawad sir….
अति सुंदर ………………. ……………………..