Homeचन्द्रकुंवर बर्त्वालघर की याद-4 घर की याद-4 विनय कुमार चन्द्रकुंवर बर्त्वाल 19/03/2012 No Comments अब ये आँखें बाहर के सुख से उदासीन अति होकर के अपने ही दुख के सागर में धीरे-धीरे हैं ढलक रहीं अब इन्हें न बहला पाएगी इस सारे जग की सुन्दरता कोई भी रोक नहीं सकता अब आँसू का झरना झरता Tweet Pin It Related Posts बहन कुँवरी की स्मृति पर प्राण तुम्हारी वह छाया मृत्युंजय About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.