कौन से उज्जवल
भविष्य की ख़ातिर
हम पड़े हैं—
महानगर के इस
बदबूदार घुटनयुक्त
वातावरण में?
जहाँ साँस लेने पर
टी० बी० होने का ख़तरा है
जहाँ अस्थमा भी
बुजुर्गों से विरासत में मिलता है
और मिलती है
क़र्ज़ के भारी पर्वत तले
दबी, सहमी-सहमी-सी
खोखली जिंदगी।
और देखे जा सकते हैं
भरी जवानी में पिचके गाल / धसी आँखें
सिगरेट से पतली टांगे
खिजाब से काले किये सफ़ेद बाल
हरियाली-प्रकृति के नाम पर
दूर-दूर तक फैला
कंकरीट के मकानों का विस्तृत जंगल
कोलतार की सड़कें
बदनाम कोठों में हँसता एच० आई० वी०
और अधिक सोच-विचार करने पर
कैंसर जैसा महारोग … गिफ्ट में।
आपकी धारणा पानी जगह सही है…..पर जैसे जैसे आबादी बढ़ती है….विकास होता है महानगर होना स्वाभाविक है और बिमारी….प्रॉब्लम भी…..पर ध्यान देने योग्य बात ये की हम सब इसमें योगदान दे रहे….हम अगर अपनी तरफसे गंद ना डालें और प्रदूषण जिसमें ध्वनि प्रदूषण भी शामिल है तो काफी हद तक बिमारी कम की जा सकती है….पर सब मिल के करें तब ना……