उस रात नीद नही आ रही थी,
कोशिश थी भुला के तेरी यादे बिस्तर को गले लगा सो जाऊ
पर कम्बख़्त तू थी जो कहीं नही जा रही थी||
नीद की खातिर २ जाम लगाए,
सोचा कि सोने के बाद हमारी बातो को मै कागज पर उतारूँगा
एक कागज उठा सिरहाने रख कर मे सो गया||
रातभर तुम्हारे बारे मे लिखा मैने
सुबह उठा तो थोड़ा परेशान हुआ क़ि गुफ्तगू के निशान गायब
शायद, शब्द सारी रात आँसुओ से धुलते रहे ||
वो गीले कागज मैने संजोए रखे
क्योकि अगर मिली तुम मुझको कागज दिखाकर के पूछना है
क्या बात करते थे हम, आज तो बता दो ||
बेहतरीन रचना आदरणीय शिवदत्त जी
सब आपका प्यार है सुरेन्द्र नाथ सिंह…
बहुत ही सुंदर…………………..
Sukriya kajal ji…
रव्याल बेहतरीन है।।।।।।पर और अच्छा लिख सकते है शिवदत्त जी
जी सारा जीवन अच्छा लिखने का प्रयास करता रहूँगा ..
शिवदत्त जी…….लाजवाब लिखा है……..बहुत देर बाद देखि रचना……
बस कुछ पैसो के लिए जीवन की कठिनाइयो उलझा था….
Beautifully written…………………………………..
sukriya vijay ji bahut bahut…
बहुत खूबसूरत ……………………………….
निवातियाँ जी आपका बहुत बहुत आभार…