प्रेमी –
यू दुर जाने से तेरे ,
दर्द इतना है इस दिल में मेरे।
कि धड़कन भी साथ देने से घबरा गई ,
तुम्हें प्यार करते करते,
ये आदत हो गई मेरी ,
कि बंद आँखों से अब तो मौत भी धोखा खा गई ।
प्रेमिका –
दुर जाने का गम मुझे भी कुछ यूं सताता हैं ,
कोसो दुर रहकर भी ,
दिल तुझे ही पाता है ।
तुम्हारी चाहत की कशिश में ,
मौत से नहीं हम जिंदगी से डरते हैं ,
बिन तेरे जीना न पड़े ,
यही सोच कर हम तो हर रोज मरते हैं ।।
“काजल सोनी “
क्या बात है काजल जी। कितना खूबसूरत चित्रण प्रस्तुत किया है इस खत के माध्यम से। प्रेमी-प्रेमिका की व्यथा का अद्भुत चित्रण।
शीतलेश जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका ।
आपकी छाप आपकी रचना में………बेहतरीन……..??
शर्मा जी कोटी कोटी आभार आपका ।
बेहतरीन………………………………
बहुत बहुत धन्यवाद आपका विजय जी ।
बहुत खूबसूरत काजल ………………… !!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका निवातिया ।