नहीं चाहती अस्तित्व होने का
ना खोने की चिंता है
चाहते हैं जो लोग सहस्रों
वही गौरवी-चहेती जनता है.
आवेश ही क्या कोई मेरा
कभी बांध पाया है
मैं निरंतर धरा हूँ प्रवाहित
इस बाढ़ में हरेक समाया है.
विश्व में अस्तित्व का अपने
हाँ, लौहा मैनें मनवाया है
रूचि रूपी अलख जगा विद्वानों ने
आज हिंदी दिवस मनाया है.
हिन्द ने मुझे पाला-पोसा
इसलिए गौरव से हूँ अभिमानित
प्रमाण नहीं चाहती औरों से
मैं हिंदी हूँ स्वयं प्रमाणित
हाँ, ‘मैं हिंदी हूँ स्वयं प्रमाणित’.
कवि :- कमल वीर सिंह उर्फ़ कमल “बिजनौरी”
हिंदी पर खूबसूरत अभिव्यक्ति पेश की है आपने ………अति सुन्दर कमल !!
श्रीमान धन्यवाद. आपकी वधाई मेरे लिए ढेर सारा प्यार है……. स्पीचलेस
bahut khoob…….. kya baat hai
बहुत खूबसूरत……
thanks for the comments………………
बेहतरीन कमल जी……………… आप असम में रहे है। मै भी यही रहता हूँ भाई
thanks for the comments…….. yes main assam main kaafi phele raha hun…..
बहुत खूबसूरत……………………………………
thanks for the comments………………… vijayji