— तुम सब खुश हो बहुत की में बेजुबान हूँ यहाँ
तुम्हारा न सही , पर दिल बेचैन है बड़ा मेरा भी यहाँ
तुमने बनाया एक रिवाज़ को इबाबत का जरिया
मुझे बड़े शौक से कुचल दिया किया टुकड़ा टुकड़ा
मुझे भी कुछ पल जीना था उस सुकून भरी गौदी में कही
मुझे भी कहना था रुक कर मेरे अपनों को अलविदा …
मुझे भी माँ की आँखों में भरे आंसू को पोछना था अभी
मुझे भी अपने यारो से मिलकर होना था जुदा……
मेरी छोटी सी खुशनुमा सी जिंदगी थी बड़ी …
मेरी आँखों में बसा ख़ूबसूरत सपनो का जाहां…
तुमने तो मुझे मार कर खुश किया ख़ुदा को कही
मेरा तोह रहनुमा मुझ से खफा है बड़ा ……..!!!!!
bahut achhi soch ke saath agretar ho…………………………….good
बहुत खूबसूरत तमन्ना…………….बेजुबानो के दर्द को शब्द देने का खूबसूरत प्रयास किया है आपने ……….इस प्रसंग में मेरी एक रचना शीर्षक “मुर्गो की सभा” नजर कीजियेगा !!
बहुत ही सुंदर रचना तमन्ना जी ।
बेहद खूसूरत……….
आपकी बात से सहमत हूँ तमन्ना जी
Courageous write on religious customs
Very nice……………………..
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