क्या मिला इन सभी को, दे दिया दर्द हमने हम ही को,
छोड़ दिया साथ तुम्हारा, तोड़ दिया दिल तुम्हारा,
आखिरी सलाम इस सर-जमीं को, दे दिया दर्द हमने हम ही को,
रखा ना हमने तुमसे कोई वास्ता, अलग हो गया अपनी मंजिल का रास्ता,
भर ना पायेगा दिल मेरा, तेरी इस कमी को, दे दिया दर्द हमने हम ही को,
मिटा दिये तुम्हारे वो निशाँ, सूखी आँखें कर रही बयाँ,
दर्द ने सोख लिया आँखों की नमीं को, दे दिया दर्द हमने हम ही को,
आखिर क्या मिला इन सभी को…
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शीतलेश थुल
बेहद उम्दा…………….
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
बहुत बेहतरीन शीतलेश ………………!
बहुत बहुत धन्यवाद निवातियाँ साहब।
बहुत खूब ………… लाजवाब रचना शीतलेश जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद काजल जी।
शितलेश जी आपके भाव अच्छे है पर गुस्ताखी माफ़, कई जगह देशज शब्द आपने प्रयुक्त किये है, और कही कहीं शब्द थोड़े बोझिल हो गए है। उदहारण के लिए आप अंतिम पंक्ति को ही ले लीजिये।
परिष्करण से रचना सारगर्भित बनायीं जा सकती है।
शेष सादर
आपके इस बहुमूल्य सुझाव के लिये मेरा आपको सादर नमन है। अभी इस क्षेत्र में काफी कुछ सिखना बाकी है। फिलहाल तो टूटे हुये शब्दो से ही कवितायें लिख रहा हूँ। आप मार्गदर्शन देते रहेंगे तो प्रगति सम्भव है।