कहीं बाढ़, कहीं सूखा,
हो रही फसलें बर्बाद,
वजह पानी ही बनता,
कम हो या ज़्यादा |
काश जोड़ पाते हम,
सारी नदियों को।
जरुरत जहाँ,
बहाते पानी वहाँ।
न पीने के पानी की होती किल्लत,
न कही होता सूखा,
न आती बाढ़।
न बनता पानी,
कलह की वजह।
न दूरिया आती दिलों में,
पानी की वजह।
खेतों में होती,
लहलहाती फसलें।
किसान भी देश का,
बदहाल न होता।
‘अनु महेश्वरी’
चेन्नई
जल की समस्या की ओर बढ़िया ध्यान खीचा है
Thanks Sundraji…
सत्य वचन…………..
Thanks Babucmji….
it’s a burning question for us. we should try to think over regarding this problem in time. Nice Poem.
Thanks Vivekji…
सुन्दर रचना…………… अनु जी ।
Thanks Kajalsoniji…
Nice thoughts ……………….
Thanks Shishirji…
सुन्दर रचना……………………………………..
Thanks Vijayji…