तू मंदिर मैं मस्ज़िद
तू चर्च मैं विहार
तू ये तू वो मैं ये मैं वो
धर्म का बाजार
औकात ये है अपनी ………
सिखा अब तलक जो
बड़ो ने ही पढ़ाई है
तीव्र गती से अब
बढ़ रही तबाही है
औकात ये है अपनी ………
अच्छा न बोले कोई
हर कोई लाचार है
मिडिया भी क्या देखे
खबरों का बाजार है
औकात ये है अपनी ………
राजनीती स्वार्थ भरी ये
नेतागन बातूने सारे
बलगलाते गरीब को
गरीब करे क्या बेचारे
औकात ये है अपनी ………
गरीब की नौटंकी देखो
सुविधाये पचती नहीं है
चाय के टपरी पर बाते
किस्मत क्यू बनती नही है
औकात ये है अपनी ………
लाज शरम सब छोड़ गई
कपड़ो की परिभाषा
बलात्कार का ट्रेंड चला है
निर्भया कभी ये आशा
औकात ये है अपनी ………
हर कोई बातों में लगा है
सच्चाई को मोल नही है
झूठ की तेज धार है यारो
सच की तो औकात नही है
औकात ये है अपनी ………
खंजर गोली का है जमाना
कलम की धार नही है
देश चला विकास करने
पर पूरा आधार नही है
औकात ये है अपनी ………
बातों का अंबार यहाँ पर
एकता का द्वार नही है
हर तरफ बस मैं ही मैं हूँ
हम का व्यवहार नही है
औकात ये है अपनी ………
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शशिकांत शांडिले (एकांत),नागपुर
भ्र.९९७५९९५४५०
भावो के कहने का नायाब तरीका………
बहुत टीस भरे कटाक्ष हैं….होने भी चाहिए…..बहुत ही सुन्दर…..
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये बहोत बहोत आभार सुरेंद्रजी ,, babucm जी