एकबार एक नेताजी को करना पड़ा बस में सफर सोचा , कितना अच्छा होता खली होता बस ये अगर अगर मगर की इस चक्कर में मंजिल उनकी आ गयी उतरे वे बस से ये कहकर जनता का कर कुछ और श्रोषण खरीद लेंगे एक बस ही नयी न होगी ये अगर मगर की चक्कर न होगी ये आगरा तफरी थोड़ी और बदनामी मैं सह लूंगा कानो में अपने रूई डालकर
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सुंदर कटाक्ष……………….
dhanyavad
AGARWAL JEE TANKAN PAR THODA DHYAN RAKHEYN. NETA JEE KI BAAT HAI TO IDHAR SE UDHAR HOGA HI……. BAHUT ACHHI KATAQCHH…..
🙂
सुन्दर रचना , सुदर्शन जी
dhanyavad
बहुत खूबसूरत व्यंगात्मक कटाक्ष ……………बिंदु जी के सुझावों का अनुसरण करे !
ji bilkul.
अति सुन्दर