हमने भी गर खुदा को तलाशा होता
तो क्यूँकर ये हमारा तमाशा होता।
करते करते तलाश उसी इक खुदा की
हमने भी खुद को खूब तराशा होता।
ठोकर खाके गिरना भी बुरा न होता
गर वो पत्थर खुदा का तराशा होता।
तू गिराके उठाता तो अच्छा होता
मैं गिरता तू उठाता तमाशा होता।
इंसान अगर खुदापरस्त नहीं होता
शैतान होता जुल्म बेहताशा होता।
शैतानी हरकत गर नाखुदा न करता
उसने भी इक खुदा को तलाशा होता।
तू सामने होता तो नजर ना उठती
पर यूँ सिर झुकाना भी तमाशा होता।
—- भूपेन्द्र कुमार दवे
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बेहतरीन……………