रात के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं
शाम को बारिश हुई है
आसमान धुला धुला है
हवा मीठे रोमांस की
खुशबू सी महक रही है.
चाँद काले छींट के
बादलों के परदे टांग
अपने शिविर में
आराम को जा रहा है.
आज उसके मलमल के कुरते का
कोई बटन नहीं लगा.
और सीने से दूधिया चांदनी
बरस रही है.
तुम्हारी खिड़कियाँ और बाल
दोनों खुले हैं.
कमरे में ए आर रहमान
“तुम मिले दिल खिले” गा रहा है
और मेरे कमरे में
गूंजे अलका याग्निक
की तीखी आवाज़ “गली में
आज चाँद निकला”.
बालकनी में दोनों गीत
एक दुसरे में घुल
एक डूयेट बन जाता है.
दोनों आवाजों की शक्लें उभरती हैं.
हम मिल नहीं सकते
लेकिन वे गीत हमें मिला रहे हैं.
लबो पे जो लरजती हुई बात है,
दोनों कह रहे हैं.
जैसे बरसों बाद
गाँव के घर जाओ
और बिजली जाने पर
छत पर खेले जा रहे
अंतराक्षरी में
दिन भर जिसे टेढी नज़र से देखते हों
उस पड़ोस की लड़की को
लक्ष्य कर अंतरा गाया जाए.
“माना अनजान है तू मेरे वास्ते
माना अनजान हूँ मैं तेरे वास्ते
तू मुझको जान ले मैं तुझको जान लूँ
आ दिल के पास आ इस दिल के रास्ते”
वो मद्धम स्वर में । हुई
नदी सी आ मिले
“जो तेरा हाल है वो मेरा हाल है
इस हाल से हाल मिला…. ”
तुम्हें मीर पढने को दिल हो आया है.
मुझे याद आ रही है कुछ टूटी पंक्ति
दोनों अपने अपने कमरों में
मुस्कराहट लिए जल्दी जल्दी
किताब ढूंढ रहे हैं.
मेरा उत्तर तुम हो
तुम्हारा जवाब मैं हूँ.
मैं हवा में तुम्हें छूने के
अपने अरमान भेजता हूँ.
ओर ये गर्म हवा तुम्हें छू कर
ठंडी होकर लौटती है.
कैसे प्यार को रोकेगा कोई.
कि जिससे मिलना मना है
उसके स्पर्श से नहा रहा हूँ मैं.
तुम्हारी यादों का
झीना चादर पड़ा है मुझ पर
अल्हड़ से मनी प्लांट के
पत्ते को छूता हूँ.
कसे हुए उन अंगो में
इनकार झूलता है.
बीच फागूण में
सिहर उठा हूँ मैं.
सुनो ईश्वर!
मैं किसी भी उम्र में
हो सकता हूँ आवारा.
सुनो समाज! मैं बुढापे में भी
कर लूँगा निर्बाध प्रेम
चाहे बेड़ियों में जकड़ो या
सात तालों की जेल में डालो
मैं जियूँगा अपनी ही तरह
देख ही लूँगा सपने
चखा ही दूंगा आज़ादी का स्वाद
तुझे जिन्दगी…..
कपिल जैन
bahhut acche sir……………………
Comment Text*धन्यवाद
उम्दा रचना……………………………………………
शुक्रिया आदरणीय
सुंदर भावपूर्ण सृजन,
*अभिनन्दन
आभार
Nice expression of feelings within.
सुन्दर भाव युक्त रचना ।
शुक्रिया काजल जी
तहे दिल से आभार