ग़ज़ल :– ले चल मुझे मैं जहाँ चाहता हूँ !!
बहर :– 122-122-122-122 !!
हसीं भोर रंगी समा चाहता हूँ !
तु ले चल मुझे मैं जहां चाहता हूँ !!
ज़रा देर कर दी सँवरने में मैंने !
तो इसके लिये मैं क्षमा चाहता हूँ !!
मैं मज़हब के दंगों से रोया बहुत हूँ !
समां आज फ़िर खुशनुमा चाहता हूँ !!
मेरा देश असहाय बूढ़ा हुआ अब !
मैं फ़िर आज होना जवां चाहता हूँ !!
फ़लक सी यहां अब रोशन जमीं हो !
चमकते सितारे यहां चाहता हूँ !!
तेरे इस मनचले जिगर का मुझे क्या ?
सदा मैं तेरी आतमा चाहता हूँ !!
यहाँ डस रहा जो हमारी तपन को !
अँधेरों का अब खातमा चाहता हूँ !!
अनुज तिवारी “इन्दवार”
बहुत उम्दा भावो से सजी साहित्य विधा से प्रिनपूर्ण एक खूबसूरत ग़ज़ल ………..अति सुन्दर अनुज …लंबे अंतराल के बाद साहित्य ग्रुप के रचना पटेल पर आपका स्वागत है !!
बहुत उम्दा भावो से सजी साहित्य विधा से प्रिनपूर्ण एक खूबसूरत ग़ज़ल ………..अति सुन्दर अनुज …लंबे अंतराल के बाद साहित्य ग्रुप के रचना पटल पर आपका स्वागत है !!
सुक्रिया dk सर …..!!
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अति सुंदर गजल…………………………….
उम्दा ग़ज़ल अनुज …………
बहुत खूब आदरणीय
बहुत समय के बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली.अति सुन्दर अनुज जी.
आदरणीय अनुज जी, हिंदी साहित्य पटल पर बहुत दिन बाद आपको देखा। बेहतरीन शिल्प के साथ गजल
उम्दा………..भाव सम्प्रेष्ण भी उत्तम
बहुत उम्दा………मेरा आपसे अनुरोध है “बहर” पे मैंने विचार पूछे थे ….आप अपने विचारों से अवगत करवाएंगे तो बहुत अच्छा लगेगा…हाँ मैंने सवाल वहां कुछ और रखा है मैं चाहूंगा आप इस के ऊपर भी कुछ अपने विचार दो की बहर में लाने को हम “किसी भी हद्द तक मात्रा” गिरा सकते हैं…मतलब कोई सीमा नहीं हैं मात्रा गिराने की… आप समझ गए होंगे…मेरा सवाल….
बहुत अच्छी रचना …….