बचपन बीता आयी जवानी,
डोली है अब मेरी जानी..
छूट जाये बाबुल का अंगना,
रीत है कैसी आज निभानी..
कल तक इस घर में थी चहेती,
कल जिंदगानी दूजे घर बितानी..
छूट जाये बाबुल का अंगना,
रीत है कैसी आज निभानी..
प्यार कहाँ मिल पायेगा ऐसा,
कौन सुनाये परियो की कहानी..
जा तो रही हूँ बाबुल मैं पर,
भूल न पाऊँ वो बातें पुरानी…
छूट जाये बाबुल का अंगना,
रीत है कैसी आज निभानी..
बाबुल से विदा होने पर बेटी के भावो को अच्छे शब्द दिए आपने …अति सुन्दर विवेक !!
बहुत बहुत आभार आपका ।
bahut sunder……………………….
बहुत बहुत आभार आपका ।
यही जीवन का यथार्थ है आदरणीय विजय जी
यही जीवन का यथार्थ है आदरणीय श्री विवेक बिजनौरी जी
बहुत बहुत आभार आपका ।