दुनिया छिपाती है अपने सारे गम, रात के अँधेरे में,
मेरे गम ऐसे के, अँधेरे में चमकने लगते है,
मरहम लगाती ठंडी बयार औरो के जख्मो में ,
यहाँ तो झोंके ही जख्मो को नासूर बनाने लगते है,
रातों की चांदनी, औरो को मीठी नींद सुलाती है,
फिर क्यूँ इसकी रौशनी, मेरी आँखों में चमकती है,
बन गये है आजकल ऐसे के, लोग भी मुंह फेरते है,
हो गये हम भी उनमे से एक, जो रात में जाग, दिन में सोया करते है,
आने जाने वाले अक्सर, हमें बेकार कहा करते है..
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शीतलेश थुल !!
Behad khoobsoorat shithleshji…….
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी।
खूबसूरत अभिव्यक्ति …………….!!
बहुत बहुत धन्यवाद निवातियाँ साहब।
nice………………..
Thank you so much Shishir sir……………
Very nice expression…
……
Thank you so much Vijay sir……………
खुबसूरत भाव सम्प्रेषण
बहुत बहुत धन्यवाद कुशक्षत्रप साहब।