लोग शहर के अनजान,एक दूजे से हैरान बहुत है !देखकर हालात इंसानियत के, दिल परेशान बहुत है !!बिकता है देखो मजहब आज आतंक के इस बाजार में !मगर धर्म के ठेकेदारों की आज भी शान बहुत है !!कही मिले जो तुमको थोड़ा सा ईमान खरीद लाना !सुना है अब दिल के कारोबार में बेईमान बहुत है !!कायदा कायम रहे इसकी राह नही इतनी आसान !रहना तैयार कुर्बानियों के अभी इम्तिहान बहुत है !!लाख तूफ़ान ऐ गर्दिश आये हो मगर वो झुकता नही !लेकिन सच्चाई पर खुदा आज भी मेहरबान बहुत है !!कोई अच्छा कहे या बुरा, तुम करना सबको तस्लीम ।कौन है अर्जमंद आज “धर्म” से, कलयुग में शैतान बहुत है ।।।।।—डी.के. निवातियाँ —(अर्जमन्द= महान)
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Behad sundar or bhaavuk saty se bharpoor Nivatiyaa ji.
Than U Very Much SHISHIR Ji…………..!
bhut khoob nivatiya sir………….. basant par meri kavita padhkr apna bhumuly sujhav dijiye.
Thanks A lot मधु जी……. आपके कहने से पूर्व ही आपकी रचना का रसास्वादन कर अपने विचार दे दिए थे …जो अभी तक कमेंट बॉक्स में आपके अनुमोदन के लिए लंबित है !!
Awesome ……….., Very emotional thoughts…………,
Thanks A lot MEENA JI …..!
Kya कहूँ इस दर्द को जो भावों में उभर आया है….फिर भी विश्वास है…..हिम्मत है…खुदा पे ऐतबारी की…यकीनन इनाम तो मिलता है…ईमान का…उसी प्रतिशत में…… नायाब कलम से नायाब हीरा एक और….सलाम आपको….
Thanks BABBU JI…आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया एवम आती कोटि आभार आपका !!
Very true and beautiful creation…………………..
Thanks VIJAY Ji…..आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका !!
Bahut hi sundar…………
Jadu hai aapke kalam me………
BAHUT BAHUT DHanyvaad KAJAL JI………Jaadu to aap logo ki najar-e-inaayat ka hai jo kucch likhne ko prerit karti hai !