गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह कुहासा हावी हो फागुन के महीने में।।
हाथ खाली हैं यहाँ पैरों में बिवाई हैं
प्राण व्याकुल हैं मगर आँखों में गहराई है।।
गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह धूप हावी हो श्रावण के महीने में।।
तड़पते भूक से बच्चे ना रोटी है ना पानी है
बताओ किस तरह कह दूँ रुत मीठी है सुहानी है।।
गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह मेघ हावी हो आश्विन के महीने में।।
शियासत से मददगारि की अब उम्मीद भी ना रही
वादे हज़ार थे मग़र ख़ाक सच्चाई है।।
गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह कुहासा हावी हो फागुन के महीने में।।
rahul awasthi
बहुत बेहतरीन भावो से सजी सुन्दर रचना !!
बहुत ही बढ़िया……….
भाव सम्प्रेषण में बेहतरीन राहुल
बेहतरीन भावो से सजी रचना……………………………