हे
गुणी
मानव
बस तुम
ऐसा करना
दुखे न हृदय
तेरे कारण कभी
किसी अभागे जन का
रहे न द्वेष अंतर्मन में
सत्य कर्म से हो पहचान !!
के
एक
तुम ही
हो जग में
सर्वश्रेष्ठ व्
सर्वशक्तिमान
बनाये रखना है
तुमको इसकी लाज
तभी मानेगा यह जग
तुझको ईश्वर की संतान !!
यूँ
तो है
व्यक्ति
असंख्यक
जग में भरे
पर ऐसा लगे
जैसे हो मृत पड़े
जीवित उसे समझे
संवेदना से हो सजग
दे इंसानियत को सम्मान !!
!
!
!
डी. के . निवातियाँ [email protected]@@
बहुत ही खूबसूरत वर्ण पिरामिड की रचना करी है आपने।
बहुत बहुत धन्यवाद शीतलेश ….!!
वाह…..इंसान के जीवन को परिभाषित करती…..मनमोहक पिरामिड के साथ…..केसर का तिलक लगाती हुई लाजवाब………….
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी ….!!
वाहवाह सुन्दर भाव पूर्ण लाजवाब………….
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक ….!!
Sir….very very very nice!!!!????
THANK YOU VERY MUCH SWATI JI……………………!!
Beautiful thoughts ………..
Thank You Very Much SHISHIR Ji.
निवातिया जी…….. जवाब नहीं आपका…….. बहुत ही सुंदर ।
बहुत बहुत धन्यवाद काजल ….!!
बेहतरीन भावपूर्ण विचारात्मक वर्ण पिरामिड
नमन आपको
बहुत बहुत धन्यवाद सुरेंद्र आपका ….!!