कही कोई भूखा,
कही अन्न की बर्बादी,
समस्या है बड़ी,
सबकी है ज़िम्मेदारी।
न थाली में जूठन छोड़े,
न जरुरत से ज़्यादा खरिदे।
मांग और आपूर्ति का,
बना रहे संतुलन,
अगर जरुरत जितना,
सब ख़रीदे उतना।
महंगाई पे भी रोक लगेगी,
पेट भर खाएंगे सभी।
संसार खूबसूरत होगा,
घर घर अन्न होगा।
भुखमरी बात होगी कल की,
खुशहाल ज़िन्दगी होगी सब की।
‘अनु महेश्वरी ‘
चेन्नई
सत्य लिखा आपने, अन्न की बर्बादी को हर हाल में रोकना होंगा
Yes Surendraji…
Nice thoughts Anu ……….
Thanks Shishirji…
बहुत ही सही कहा आपने……जितना ज़रूरी उतना लें….और व्यर्थ ना करें….बहुत ही खूबसूरत…. मैंने भी “अमावस का चाँद” इसी सन्देश के साथ लिखा था….पढियेगा वक़्त मिलने पे…..
Thanks Babucmji…
अन्न की बर्बादी सचमुच नहीं होनी चाहिए ।
सुंदर रचना……………………… ।
Thanks Kajalsoniji….
very nice…………………
Thanks Nivatiyaji…