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22 Comments
शीतलेश थुल07/09/2016
बहुत खूब विजय जी।
“सच्चाई छिप सकती है अगर आपस में मेल हो”
खुशबू आ भी सकती है कागज के फूलो से बशर्त्ते उसमे भी तेल हो “
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार. अब तो पुरे समय आप ही लोगों के पास घूमती है कभी कभार भूले भटके मेरे पास आ जाती है. बोलती है आजाद भारत में मैं गुलाम क्यों रहूँ.
बहुत खूब विजय जी।
“सच्चाई छिप सकती है अगर आपस में मेल हो”
खुशबू आ भी सकती है कागज के फूलो से बशर्त्ते उसमे भी तेल हो “
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.न ही सच्चाई को छिपाइए न ही गजल को तेल लगाइये. बस कलम को कागज पर चलते जाइये.
bahut achchhi prastuti vijay sahab bahut khub.
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत ही सुंदर रचना विजय जी ………………. ।
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत अच्छे विजय ……………….अंतत: ग़ज़ल को बाँध ही लिया आपने !!
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार. अब तो पुरे समय आप ही लोगों के पास घूमती है कभी कभार भूले भटके मेरे पास आ जाती है. बोलती है आजाद भारत में मैं गुलाम क्यों रहूँ.
सत्य वचन गुलाम होना भी नही चाहिये…………!!
पुनः आभार.
अति सुन्दर विजय जी !!
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार.
बहुत ही सुन्दर आदरणीय
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
खूबसूरत ग़ज़ल विजय
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार.
बहुत ही खूबसूरत रचना……और आपके जवाब हा हा हा……
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार. मुझे मेरी यह गजल सबसे प्रिय है.
हमें भी बहुत ही प्रिय है?
पुनः ह्रदय से आभार.
बेहद खूबसूरत रचना….विजय जी।।।
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.