तेरे बिन ऐसे जिए जा रहा हूँ,
जैसे खुद पे सितम मैं किये जा रहा हूँ
तेरी कमी अब भी खलती है दिल को,
अश्को को अपने पिए जा रहा हूँ
तेरे बिन ऐसे जिए जा रहा हूँ,
जैसे खुद पे सितम मैं किये जा रहा हूँ
हर एक याद दिल को दुखाती है तेरी,
हर शाम फिर याद लाती हैं तेरी
धोखा सा खुद को दिए जा रहा हूँ
तेरे बिन ऐसे जिए जा रहा हूँ,
जैसे खुद पे सितम मैं किये जा रहा हूँ
मुझको पता है तू भी ना भूलेगा मुझको,
सपनो में आकर के छू लेगा मुझको
इसी उम्मीद से आँखें बंद किये जा रहा हूँ
तेरे बिन ऐसे जिए जा रहा हूँ,
जैसे खुद पे सितम मैं किये जा रहा हूँ
बहुत खूब…………………………..
शुक्रिया !! विजय साहब
बहुत सुंदर………………… ।
शुक्रिया काजल सोनी……….
Beautiful…………………..
Thanks Sir….for your motivation…
Lovely write…………………….
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nice write………………………..
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