मैं जानता हूँ सूरज
कि तुम संशय और समस्याओं से
आँखे चुराकर स्वयं को असत्य रूपी
अंधकार के हवाले कभी नहीं कर सकते
क्योंकि तुम जानते हो कि
सत्यप्रकाश को छुपाना असत्य रूपी
अंधकार के सामर्थ्य की बात नहीं…
मैं जानता हूँ सूरज
तुम पलायन नहीं कर सकते
छुप नहीं सकते अपने विरोधी से सांठ-गाँठ कर
क्योंकि तुम जानते हो
कि तुम अकेले नहीं हो
तुम्हारे पीछे है गतिमान संपूर्ण सृष्टिचक्र…
भले यह संभव है कि
संशय और भ्रम की काली चादर
तुम पर हावी होकर
पल दो पल के लिए तुम्हें ढंक ले
किंतु मैं जानता हूँ
जीवन चक्र कभी रूक नहीं सकता
तो फिर संचालनकर्ता भला कैसे रूक सकता है!
शायद इसलिए मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ सूरज
आश्वस्त हूँ मैं और बेसब्री से प्रतीक्षारत भी
तुम्हारे निकलने का
तुम्हारे पुनः मेरे विश्वास के आसमान में निकलने का…
डॉ. विवेक कुमार
तेली पाड़ा मार्ग, दुमका
(C) सर्वाधिकार सुर.
very nice sir……
बहुत बहुत धन्यवाद आपकी इस सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए ambikesh जी.
यथार्थ प्रकट किया आपने अध्यात्म मिलाकर अपनी रचना में। बहुत बढ़िया आदरणीय विवेक जी
खुले दिल से सुंदर बेबाक प्रतिक्रिया के बहुत धन्यवाद सुरेन्द्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी.
बहुत खूबसूरत …………!!
सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद निवातियाँ डी. के. जी.
Lovely positive thoughts ………………..
सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद Shishir “Madhukar जी.