मुहब्बत कीजिए या न कीजिए एक करम कीजिए.
इन्कार भी हस कर कीजिए इतना तो करम कीजिए..
क्या पता वक्त बेवक्त नाचीज काम आ जाए..
ऐ मगरूर हसी नफरत तो जरा कम कीजिए..
दिल मे किसी गैर को भले ही सजाइये..
कदमो मे रहने दीजिये इतना तो रहम कीजिये..
नजरो मे रहने दीजिये गुस्सा भी जरा पीजिये..
फूल है आप गुलशन के रूख जरा नरम कीजिए..
फूल है आप गुलशन के रूख जरा नरम कीजिए..
कुछ भी कीजिए ऐ मह्जबी, इसी जनम कीजिए..
बेहतरीन गजल………………….
Thank You Sir
Beautiful…………..
Thank Your Sir