मेरी आँखों के सामने वो जब से आया है
उसकी सूरत की आभा ने मुझे लुभाया हैं
बड़े पास से जब मैंने उसका दीदार किया
हर एक अंग में हँसी ताज महल पाया है
मैंने शराब पीना यारो कभी से छोड़ दिया
उसके लबों ने मुझे फ़िर नशे में डुबाया है
अपने घर को मैंने फूलों से सजाया किया
पर उसकी सांसों ने ही इसको मह्काया है
जिस सुकून को मधुकर सदा तरसा किया
उसके आगोश में ही उसका अंश पाया है
शिशिर मधुकर
हमेशा की तरह सुन्दर कविता है आप्की शिशिर जी
Thank you very much Manjusha ji
बेहद खूबसूरत………
So nice of you Babbu ji for liking
मधुकर सर, आपके लेखनी से निकली एक और खुबसूरत रचना
Thank you so very much Surendra for your lovely comment
बहुत खुबसूरत शिशिर जी …।।
Thank you so very much Nivatiya Ji
बहुत सुन्दर रचना शिशिर जी !!
So nice of you Meena Ji for lovely comments
बहुत सुन्दर गजल……………………………….
Hearty thanks Vijay ……….
हमेशा की तरह बहुत खुबसूरत रचना…………… ।
Hearty thanks Kajal Ji……
बहुत ही खुबसूरत रचना मधुकर जी…………………
Thanks Sheetalesh …………..
bahut sunder madhukar sahab aapki prastuti bahut achchhi hai.
Thank you Bindu Ji