ना मात-पिता को पाल सका कुत्ते पर करे गुमान
देखो हो गयी कपूतों से घर-घर की कहानी बागवान
घर-घर की कहानी बागवान -2
क्यों भूल गया माँ का आँचल
वो चंदा मामा की लोरी
वो माँ के हाथों का काजल
वो सच्ची चाहत की डोरी
बिन मात-पिता इस जग में हर इक घर है शमशान
देखो हो गयी कपूतो से ——————-
जिसने उँगली को थाम तुझे
पग-पग चलना सिखलाया था
अपने कंधे पर बिठा तुझे
तेरे दिल को बहलाया था
क्यों उसी तात के सर पर चढ़कर बैठ बना शैतान
देखो हो गयी कपूतो से ——————
जब नारि जिंदगी में आती
माँ-बाप बुरे लगने लगते
वो सीख और टोका-टोकी
आलाप बुरे लगने लगते
सब चाल-ढाल बदले देखो जबसे भर गये हैं कान
देखो हो गयी कपूतो से ——————
है समय सँभल जा ऐ मूरख
वरना इक दिन पछताएगा
जब इसी तरह तू भी अपनी
औलाद से ठोकर खाएगा
जब तेरी आँखों के तारे बन जाएँगे हैवान
देखो हो गयी कपूतो से ——————-
मन्दिर में तो पत्थर पूजे
जिन्दा मूरत ना पहचाने
करता है वहाँ विनय अनुनय
माँ बाप की पीर नहीँ जाने
सब दौलत उनके चरणों में, हैं ईश उन्हें पहचान
देखो हो गयी कपूतो से ——————-
उसका दिल कितना बड़ा देख
जिसने खुलवाया वृद्धालय
वो शख्स स्वयं इक ईश्वर है
उसका मन मंदिर देवालय
सबकी करनी को देख रहा ऊपर बैठा भगवान
देखो हो गयी कपूतों से घर-घर की कहानी बागवान
घर-घर की कहानी बागवान -2
अपने माँ बाप को कभी दुःख मत दें उन्हें वृद्धाश्रम जाने के लिए मजबूर न करें
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रचनाकार- कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
9675426080
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