अश्क बहुत दूर की याद दिलाती है
खुद तड़पती हुई गालों पर आती है।
दो अखियॉ दुःख-सुख की सागर है
ममता और प्यार भरी ये गागर है।
मन सागर में ही खोया है
जो अंतस मन में बोया है।
वह सागर अश्क वहा करके
मन का ही मैल धो देती है।
जो छुपी रहती है चित्मन में
वह आकर खुद रो लेती है।
वह बहुत करीब से आती है
मन को जैसे छू जाती है।
कोई रोता है कुछ खो करके
कोई पाकर रोता रहता है।
कोई मजबूरी में रोते हैं
कोई भय से रोया करता है।
कभी अश्क निकलकर बहती है
कभी ऑखों में सुख जाती है।
यह धैर्य-धैर्य की बात है
जो सांसो में रूक जाती है।
Writer Bindeshwar Prasad Sharma (Bindu)
D/O Birth 10.10.1963
Shivpuri jamuni chack Barh RS Patna (Bihar)
Pin Code 803214
Mobile No. 9661065930
सैदव की तरह उत्तम ……….!!
bahut bahut sukriya D K Sahab.
वाह….क्या अश्कों को लाजवाब अंदाज़ में परिभाषित किया है…..
Thank you for your comments.
उत्तम ……………………….. हमेशा की तरह
Singh sahab apne dil se hardik aabhaar.