कभी अनायास ही याद आ जाता है
मुझे अपना गाँव
घर के सामने का बागीचा
बागीचे में बूढ़े बरगद का पेड़
एक आम का पेड़
कुछ लेटा हुआ सा
लगड़ा वाला पेड़
बेरी के फल और बरगद की छाँव
कभी अनायास ही याद आ जाता है
मुझे अपना गाँव
आँगन में लगे अमरुद
उसकी छाँव में रखा चूल्हा
चूल्हे में रोटिया पकाती अम्मा
बकरी का दूध
उसमे गुड़ मिलाती दादी
हर बार चुपके से मैं देखता
बेवायियो से भरे दादी के पाँव
कभी अनायास ही याद आ जाता है
मुझे अपना गाँव
घर से थोड़ी दूर का तालाब
जिसमे पशु और बच्चे नहाते थे
कभी चुपके से मै भी भाग जाता
लौटने पर मिलती
दादी और अम्मा की डांट
दादी कहती कभी मत जाना
साठ हाथियों का है उसमे डुबाव्
कभी अनायास ही याद आ जाता है
मुझे अपना गाँव
कभी लगता है चला जाऊँ
लौटकर अपने गाँव
सो जाऊं
आँगन में बिछी हुई खटिया पर
जहाँ दादी सुनाती हो किस्से
लिपटकर रोऊ अम्मा से
सुबह दूध गुड़ और रोटी खाँऊ
लँगड़े आम पर चढूं
बैठू बूढ़े बरगद की छाव पर
और नहाऊ डूब कर उस तालाब में
जहाँ डूबे थे
दादी के साठ हांथी
अम्बिकेश
बहुत बहुत उत्तम रचना आपकी……..बीते लम्हो को जीवंत करती…..बहुत अच्छे
धन्यवाद सर…………….
बहुत अच्छे …………….!!
धन्यवाद सर…………….
nice…………………….
बहुत सुंदर……………………. ।
बहुत बढ़िया गाँव…..☺