फितरत मे इन्सान के बसी है नाफरमानी ।
छोडदी जन्नत उसने पर न छोडी मनमानी।
तकब्बुर मे करता है कमब्खत हरदम नादानी।
फना होगये कई रुस्तम तवंगर बनगये कहानी।
चलती रहेंगी दुनिया खत्म होती रहेंगी जिन्दगानी।
न सुधरा है इन्सान न सुधरने की कोई निशानी।
(आशफाक खोपेकर)
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बहुत सुन्दर कटाक्ष ………………
सही कटाक्ष…….आज कल है ही ऐसा……बहजत खूब….
बहुत ही सही लिखा आपने…………………… ।
सत्य वचन ………!!
very nice sir………………….
बहुत ही सुन्दर