तेरे में अक्श उलझ गया हूँ
चल आकर सुलझा दे मुझे
उठा दे ठीक ढंग से या
पाताल में गिरा दे मुझे
ढोया नहीं जाता मुझसे अब
पहाड़ इतनी ख्वाहिसों का
कुछ तो हल्का कर दे या
फिर हौसला दे मुझे
बना दे पंछी कोई जो
पंख फैलाकर उड़ सके
दम घुटता है भीड़ मेंआजकल
आसमानी घोसला बना दे मुझे
बड़ा दर्द उठता है इस
बेरंगी भाग दौड़ में
खड़ा कर दे पैरों पर या
हमेशां के लिए मिटा दे मुझे
मन के भावो का अच्छा चित्रण……
खूबसूरत भाव ……..अति सुन्दर !!