कल जब किसी ने अचानक पूछा ,
कि कलयुग किसे कहतें है ?
तो खुद को हिंदी का ज्ञाता समझने वाली ,
मैं थोडी देर के लिए तो सोच मे ही पड़ गयी।
हाँलाँकि बचपन में बताया तो गया था ,
मगर जब दिमाग में बहुत जोर देने पर भी ,
कुछ याद नहीं आया तो मैं मनगढंत ,
जवाब देने की तैयारी में लग गयी।
जब बात इज्जत की हो तो जवाब तो ,
देना ही था ,मेरा जवाब था कि जिस युग में,
इन्सान अपने आज से ज्यादा कल की चिन्ता में,
लगा रहता हो ,उसे कलयुग कहतें हैं।
वैसे बाद में जब मैंने खुद अपने इस जवाब पर,
ध्यान दिया तो पाया कि इससे ज्यादा परफेक्ट तो,
दूसरा कुछ अर्थ तो हो ही नहीं सकता है। ,
आजकल लोग अपने आज को दाँव पर लगा कर भी,
अपने आनेवाले कल को सवाँरने में निरंतर ही लगे रहतें हैं .
फिर उनका आज कितना भी सूंदर क्यों नहीं हों?
उन्हें वह दिखाई नहीं देता है,कल चाहे बीता हुआ
कल हो या आने वाला कल ,यह बात दोनों
दोनों ही कल पर लागू है,बीते हुए कल का
गुणगान करते जहाँ हमारे मुँह नहीं थकतें हैं।
वहीँ आने वाले सुखद कल की ख़ातिर हम सभी ,
खुद अपने आप को, और अपने बच्चों को भी ,
धीरे धीरे मशीन ही तो बनाते जा रहे हैं,
वाह, क्या सही समय पर यह शब्द,
जुबान पर आया है,अब याद आ गया ।
कलयुग का मतलब मशीनीयुग ही होता है ,
खैर मैंने तो आपको दोनों ही अर्थ समझा दिया है ,
अब आप अपने हिसाब से आज के सन्दर्भ में ,
क्या ज्यादा लागू होता है ,मतलब निकाल सकतें हैं।
Very true and effective reality filled sarcasm ……………..
बहुत बहुत धन्य्वाद आपका इस सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए शिशिर जी.
कालपुर्जे का कल और योग मिल के बना कलयुग…. आप ने आहि कहा मशीन हो गए हम सब…. उसमें अपने आप को और रिश्तों को भूलते जाए हैं…दिल में भावनाएं खत्म जो रही हैं…..बहुत ही सार्थक है आपकी रचना…..
आप्ने जितने विस्तार से मेरि कविता कि तारीफ करी है उस के लिए मै तहेदिल से आपकी शुक्रगुजार हु .बहुत बहुत धन्यवाद बब्बु जी.
कलयुग को परिभाषित करने का अनूठा अंदाज …अति सुंदर ।।
बहुत बहुत धन्य्वाद आपका प्रोत्साहन के लिए.
बहुत बढ़िया मैम…………….. ।
धन्य्वाद काजल तुम्हारी प्रतीक्रिया के लिए .
bahut hi badiya manjusha ji…………………….
बहुत बहुत धन्य्वाद मनि आपके प्रोत्साहन के लिए