प्रथम चरण वंदन गुरु देव को, राह अस्तित्व की दियो बताये।
मुझे निर्जन शिला से, घिस घिस कर नगीना दियो बनाये ।।
कितने शुभ दिवस पर बना आज पावन संजोग
गुरु गणपति संग आयो है गुरु दिवस का योग ।।
गुरु महिमा बखान क्या कीजे , मन बुद्धि गुरु से निर्मल होये ।
बिन गुरु जीवन पत्थर समान, पड़े हाथ गुरु के मोती बन जाये ।।
जीवन के श्रंगार को रूप मिले माता पिता के प्रेम ज्ञान से ।
खुशबू के रंग भरता गुरु, जीवन महकता उनके कल्याण से ।।
नमन हर उस इंसान को जो जीवन में मेरे आता है ।
देकर अच्छे बुरे अनुभव कुछ न कुछ सिखा जाता है ।।
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डी. के निवातियाँ [email protected]@@
अति सुन्दर आदरणीय
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक !!
बहुत सूंदर………………………….
बहुत बहुत धन्यवाद विजय !!
Lovely thoughts and gratitude for teachers.
Thank you from the heart to induce a reaction Shishir ji !
लाजवाब……..हमेशा की तरह…और अंत जिस तरह से किया है वो आप जैसा साहित्यक सोच …और प्यार वाला इंसान ही कर सकता…. नमन हर गुरु को….आपकी रचना को…आपके विचारों को…..
ये आपकी विशाल ह्र्दयता है जो अतिशयोक्ति पूर्ण प्रशंशा से परिपूर्ण वचनों से अनुग्रहित करते है ………आपका ह्रदय से धन्यवाद बब्बू जी !!
निवातिया जी आप मेरे गुरु बन जाइये please
ताकि मैं भी आपकी तरह सुंदर रचना लिख सकु।
क्यु क्या बोलते हैं आप ?
क्या कहूँ आपने निरुत्तर सा कर दिया काजल ………आप लोगो के लिए जिस स्वरुप में हूँ उसी में सदैव तत्पर हूँ, मैं कोई ज्ञानी नही मगर सम्बंधित प्रसंग में सहभागी की भूमिका निभाना अपना कर्तव्य समझता हूँ !! आपका मन रखते हुए बस इतना कहूंगा
मैं निर्जन प्राणी बन निर्मल जल बहता हूँ
जो जैसे अपनाये तस रूप को पा लेता हूँ !!