जब भी लिखने बैठता हूँ, सोचता हूँ क्या लिखूँ
ऐ जिंदगी तू ही बता, मैं क्या लिखूँ – मैं क्या लिखूँ
जीवन का सार लिखूँ या कोई मलिहार लिखूँ
तू ही बता, मैं क्या लिखूँ-मैं क्या लिखूँ”
माँ का दुलार लिखूँ या सजनी का प्यार लिखूँ
पापा की फटकार लिखूँ या गुरु की मार लिखूँ
ऐ जिंदगी तू ही बता मैं क्या लिखूँ- मैं क्या लिखूँ
वो भाई का प्यार लिखूँ या दोस्तों का रूठना मनाना लिखूँ
वह वक़्त का प्यार लिखूँ या फिर उसकी दुत्कार लिखूँ
ऐ जिंदगी तू ही बता मैं क्या लिखूँ……….
सोच को अच्छे शब्द दिए है आपने.
आप लिख दो…चिंता न करो…हा हा हा….बहुत खूब……….
शर्मा जी, मधुकर जी,
निवातिया जी, मनी जी , विजय जी
या फिर सुरेंद्र जी इनमें से आप किसी के बारे में
लिख सकते हैं ।
सबको आप अपना ही समझे।
बहुत खूब……….. ।
लिखने के लिए न कोई वजह चाहिये
दिल के जज्जबातो को शब्द चाहिये !!
BILKUL SAHI KAHA D.K. JI
THANKS ALL OF YOU