आज तुम…
बहुत चुप्प चुप्प से थे…
पहले की तरह कोई बात नहीं…
कोई गिला…शिकवा…गुस्सा…
कुछ भी नहीं…
दुनिया की बातें जो चुभती थी तेरे दिल में…
कचरा कह निकालते थे सब मुझ पे…
पर आज बिना कुछ कहे…सुने तुम मुझको…
सदा के लिए अलविदा कह निकल गए….
शायद कचरा नहीं रहा मन में तुम्हारे या
बदल दिया मुझको….
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/सी.एम्. शर्मा (बब्बू) ….
Bahut hi badiya bhavpurn rachna…sir!!
तहदिल आभार आप का…….
क्या लिखा है आपने शर्मा जी ।
मेरे तो ऊपर से पार हो गया ।
हा हा हा…..आभार आप का ऊपर से निकल गया….उसका….
ऊपर से निकल गया तो भी आभार ।
मैने तो मजाक में लिखा था ।
बहुत बहुत सुंदर रचना …………… मन को स्पर्श करते
हुए शब्द आपके। लाजवाब ………………………… ।
आप के मन को स्पर्श की मेरे मन को राहत मिली… हा हा….शुक्रिया…आभार…दिल से….
बहुत सूंदर………………………….लाजवाब……………..
बहुत बहुत आभार आपका……….
बहुत खूब……………आदरणीय
बहुत बहुत आभार आपका……….
सादर नमन आपको …………
आपके सम्मान का दिल से अभिनन्दन……..
अपना कोई विशिष्ट अति प्रिय जब जीवन पथ से रूठकर साथ छोड़ जाता है उस समय के अंतर्मन की पीड़ा को बड़े मार्मिक रूप में उकेरा है आपने ……..बहुत खूब बब्बू जी !!
जी सही कहा आपने…..तहदिल आभार आपका…….
बब्बू जी बड़े से बड़े महल में भी कचरे की पेटी की आवश्यकता होती है. पर खुद उस पेटी की भी अपनी मनोदशा को आपने बखूबी शब्द दिए हैं. यार की पीड़ा को समेटने का भी सुख होता है बेहतरीन .
दिल से बहुत बहुत आभार आपका……….