मेरे गुरु
हाथ पकड़कर जिसने
मुझे पढ़ना-लिखना सिखाया
भाषा-अक्षर का बोध
जिसने मुझे कराया
दुनिया के साथ कदम मिलाकर
जिसने चलना सिखाया
जिसने की मेरी जिन्दगी शुरू
वो है मेरे आदरणीय गुरु
खेल-खेल में हमे पढ़ाते
अच्छी-अच्छी बातें बताते
मेरे हर सवाल का
तुरंत जवाब बताते
मेरी हर उलझन को
वे तुरंत सुलझाते
जब करता हूँ कोई गलती
तो मुझे प्यार से समझाते
कभी-कभी तो वे
मुझे डांट भी लगाते
जब अपनी असफलता पर
हो जाता हूँ निराश
तब एक दोस्त बनकर
मेरा हौसला बढ़ाते
दुनिया में आगे बढ़ाने को
हमेशा कुछ नया सिखाते
प्रेरक कथाएँ सुनाकर
मेरा आत्मबल बढ़ाते
आज में जो कुछ हूँ
बस उनका है हाथ
इसी तरह बना रहे मुझपर
मेरे गुरु का आशीर्वाद
पियुष राज,दुधानी,दुमका ।
(Poem. No-29) 28/08/2016
बहुत ही सुन्दर भाव……गुरु की महिमा का बखान….प्रभु का बखान….
Bahut hi sundar kavita!!!
बहुत खूब…………………..
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूं पाँय
बलिहारी गुरु आपनो गोविन्द दियो बताय
अति सुन्दर …………!!
गुरु के लिए बहुत ही सुंदर भाव भरी रचना
बहुत खूब…………………………. ।