एक बार माता पार्वती ने किया था तप बहुत ही कठिन,
चाह थी उनकी,मिले शिवजी पति रूप में उनको,
निराहार रही कई वर्षोंतक हिमालय के गंगा तट पर,
पिता उनके हुए बहुत दुखी,हालत उनकी देखकर,
एक दिन भेजा प्रस्ताव विष्णु जी ने,
विवाह पार्वती जी से करने को,
सहर्ष स्वीकार किया पिता ने,
बतलाया ख़ुशी ख़ुशी पार्वती को,
सुना जैसे ही पार्वती ने,दुःख से विलाप करने लगीं,
कहने लगी वो अपनी सखी से,
तप किया है मैंने सिर्फ शिव जी को पाने की खातिर,
पति रूप में कोई और मुझे स्वीकार नहीं,
तब घने वन में चली गयी वो,संग लिया अपनी सखियों को,
गुफा में जाकर वास किया, शिव आराधना में लीन हुई वो,
भाद्र पक्ष की शुक्ल तृतीया को, बनाकर रेत से शिव प्रतिमा को,
रात भर किया जागरण उन्होंने,शिव जी को मनाने को,
प्रसन्न हुए शिव जी बहुत और प्रकट वहाँ पर हुए,
पार्वती जी को उनके तप का फल मिला,
शिव जी के रूप में उनको जीवनसाथी मिला।
हरतालिका तीज की महिमा है न्यारी,
जो भी करता है इस व्रत को,
शिव की कृपा मिले बहुत सारी।।
By Dr Swati Gupta
Nice write Dr. Swati……
Thanks a lot..sir!!
शुक्रिया महत्व बताने का…..एक रूप यह भी हो सकता कि तप जो शिव हमारेभीतर है उसको पाने का भी….बहुत सुंदर…..
Ji sir!!You r absolutely right…
Thanks a lot…sir..
बहुत खूब स्वाति जी आपने तो हरतालिका तीज की
पुरी महत्ता बया कर दी ।
अति सुन्दर …………………. ।
Thanks a lot… kajal ji
हरितालिका तीज की बधाई
आपने मुझे असली कथा बता दी
Aapka bahut bahut aabhar…Sir…
बहुत सूंदर………………………….