‘ मुझमेँ दुःख का संसार बसा करता है
माया मेँ मन लाचार फँसा करता है,
हूँ चढ़ा रहा नित अश्रुमाल मैँ जिस पर –
वह भी मुझसे हर बार हँसा करता है ….
भूलोँ पर भी मैँ भूल किया करता हूँ
आघातोँ पर मैँ धूल दिया करता हूँ
मेरे पथ मेँ जो शूल निरंतर बोते-
उनको भी मैँ मृदु फूल दिया करता हूँ।
असह्य वेदना भार लिए फिरता हूँ
उर मेँ अगणित उद्गार लिये फिरता हूँ,
मेरे उपवन जो लूट दे रहे पतझड़- उनको भी मधुमास दिया करता हूँ।
जय हिंद! !!
———————————कवि आलोक पान्डेय
मंगल मंगल सुमंगल
Bahut khoob…………
Heartiest thanks for the support view.
Jai hind!