जिस रास्ते वो हमेशा गुजरा करती, मैं रोज वही खड़ा उसे निहारा करता था,
देखेगी पलटकर एक ना एक दिन, यही सोचा करता था,
कब मिल जाये मौका भूले से ही सही, गुलाब सीने में छुपाये रखा करता था,
कभी जुदाई का गम तो कभी बेवफाई का रंग, एक खंजर भी दामन में छुपाये रखा करता था,
जिस रास्ते वो हमेशा गुजरा करती, दिल टुटा अपना थामा करता था ,
कभी कभी गुलाब हांथो से छूट, खंजर की नोक पे गिरा करता था,
जिस रास्ते वो हमेशा गुजरा करती, इन्तजार नजरो का किया करता था,
मिलेगी एक न एक दिन नजरे उससे, आँख ही आँखों में इजहार किया करता था,
हद हो चुकी थी चुप्पी की, उसकी बातों को तडपा करता था,
आज फैसला हो जायेगा, हरदम यही सोचा करता था…..
.
.
.
To Be Continue
शीतलेश थुल
मनोभावो को सुंदर शब्दो में दर्शाया आपने !!
बहुत बहुत धन्यवाद निवातियाँ साहब।
Nice expression of love thoughts
Thank you very much Shishir Sir…..
लगता है प्रेम काव्य लिखकर छोड़ेंगे आप. बहुत खूब…………………………
हा हा हा हा…………..कोशिश पूरी है सिंह साहब। बहुत बहुत धन्यवाद विजय जी।
Lovey write…………………….!
Thank you very much Kushkshatrap Sir…..
very nice sir…………………
Thank you very much Mani Sir…..
अति सुन्दर क्या कहने
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक जी।
Sundar…………
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी।
बहुत ही सुंदर……………. शीतलेश जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद काजल जी।