नादानी में ही सही, अनजाने में ही सही,
हम एक गुनाह कर बैठे, आपसे दिल लगा बैठे,
नासमझ था, बेचारा दिल ही तो था,
आप क्यूँ भला हमारा दिल तोड़ बैठे,
सुना बहुत था बहुतो से, आप दिल तोड़ने का शौक रखते है,
फिर कैसे दिल के टुकडो से, अपना ही हाँथ काट बैठे,
दिल लगाने की सजा दे दी होती हमे, आप फिर क्यूँ ये गुनाह कर बैठे….
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शीतलेश थुल !!
खूबसूरत भाव बेहतरीन सृजन
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक जी।
अति सुन्दर ……
“यारो मोहब्बत को गुनाह का नाम न दो
खुदा की इबादत को ऐसा अंजाम न दो !!”
“अंजाम की चिंता किसे होती है मोहब्बत में ,
पाने की चाह में लोग अक्सर गुनाह कर बैठते है। ”
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आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिये सहृदय धन्यवाद।
अति सुंदर……………………………….
बहुत बहुत धन्यवाद विजय जी।
Very nice Sheetalesh …………
बहुत बहुत धन्यवाद मधुकर जी।
Very nice composition.. Sheetlesh ji
Thank you very much Swati Mam……
बहुत खूबसूरत…….
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी।
It’s very very phlospical line’s sir
Thank you very much for your appreciation Sharma Sir……