यहाँ हर धर्म की इक अजीब कहानी है
अपना खून खून दूसरों का पानी है
वक़्त की गजब चाल को समझे भी कैसे
नफरत की गिरफ्त में यहाँ हर जवानी है
किसी के खून से जंगो का फैसला नहीं होता
कोई कांच को हीरा समझे तो उनकी नादानी है
बैठे हैं जो आज भी मोहब्बत के इंतज़ार में
मोहब्बत की गलियों में मगर अभी वीरानी है
भटक गए हैं जो नफरत के घुप अंधियारे में
चिराग ऐ मोहब्बत से जिंदगी में उनकी सहर लानी है
मज़हब की दीवारें मज़बूत हुई तो क्या
दिलों में बनी नफरत की दीवारें अब गिरानी है
बहुत सो चुका अब तो जागना ही होगा हितेश
अमन ओ चैन की लिखनी अब नयी कहानी है
हितेश कुमार शर्मा
अति सुन्दर ………………
अति सुंदर……………….
बहुत खूबसूरत ……………………!!
Very beautiful write Hitesh ji
very nice hitesh ji….
हितेश जी बेहतरीन भाई……………………
bhut badiya sir……………
बहुत बहुत धन्यवाद
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद