एक अजीब सा रिश्ता जुड़ा है बरसात के साथ,
याद आ जाते है बीते पल, बीती बातो के साथ,
दूर कही उफ़्क से अब्र चले आते है,
संग अपने बीते पलों की यादें ले आते है,
बरसात की पहली बूँद, जब जमीं से टकराती है,
बीते पलों की यादों को ताजा कर जाती है,
बादलों की गडगडाहट, हुल्लड़पन याद दिलाते है,
मेंढक की टर्र टराहट, हमारा शोर मचाना बताते है,
सडको पे जमा पानी, जब पहियों से उछलता है,
कूदा करते थे हम भी कभी, आज भी मन मचलता है,
वो बिजली की कड़ कड़ाहट का कानो में गूंजना,
हमारा डर कर एक दुसरे को पकड़ लेना,
फिर एक भयंकर आवाज शोर गुल मचाती थी,
नयी चुस्ती नयी फुर्ती अंग अंग में भर जाती थी,
दूर कही उफ़्क से अब्र चले आते है,
बीते पलों की तस्वीर को कैद कर चले जाते है
तात्पर्य :- अब्र= बादल , उफ़्क= क्षितिज
शीतलेश थुल
बहुत खूबसूरत चित्रण बरसात का……
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा साहब।
बहुत सुंदर बरसात का वर्णन ……………………………
बहुत बहुत धन्यवाद सिंह साहब।
बाचपन की अनुभूति निराली होती है शीतलेश ………उक्त विषय पर वर्षा ऋतू का मनमोहक अंदाज में चित्रण बहुत खूबसूरत है !!
आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिये आपको सहृदय धन्यवाद निवातियाँ साहब।
बहुत खूब शीतलेश जी
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक जी।
बहुत ही उम्दा रचना ………………………
बहुत बहुत धन्यवाद मनी जी।
Beautiful write Sheetalesh
Thank you very much Shishir Sir…..
Very nice… Sheetlesh ji
Thank you very much Swati Mam………..