शांत रहिये, शांत रहिये।
यह शब्द क्यों चुभने लगे है आज कल ,
क्या शांत रहने के लिए ही ,
ईश्वर ने दी थी जुबान।
क्या शांत रहने के लिए ,
माँ बाप ने सिखाई थी जुबान ,
या शांत रहने के लिए ही ,
शिक्षा ने दिए जुबाँ को नए नए शब्द।
यूँ तो मैं ज्यादातर तुम्हारे कहे अनुसार ,
शांत ही हो जाती हूँ , महज
शांत रहने के लिए नहीं ,
मगर शान्ति बनाये रखने के लिए।
माँ बाप ने पंख भी तो दिए थे,
आज जब पाँव थकने पर ,
उन्ही पंखो से उड़ना चाहती हूँ ,
कुछ नए पुराने ,तरह तरह
के लोगों से जुड़ना चाहतीं हूँ।
कुछ उनकी सुनना और
कुछ अपनी ,कहना चाहतीं हूँ।
तो तुम मुझे बार बार ही ,
शांत क्यों कर देते हो ?
अगर शांत ही करना था तो,
क्यों नहीं शांत होने दी थी ,
मेरे ह्रदय की धड़कन।
क्या मैं आजकल सचमुच ही ,
कुछ ज्यादा ही बोल रहीं हूँ ,
नही ,मैं शायद अपने विचारों को ,
शब्दों में तोल रहीं हूँ।
मैं यह अच्छी तरह जानती हूँ कि ,
मुझे यूँ इस तरह शांत कराने के पीछे ,
तुम्हारा कोई दुर्भाव नहीं है ,
बल्कि परवाह है कि लोग ,
मेरा मजाक ना बनाने लगें।
यह भी मानती हूँ कि यह भी तुम्हारा ,
मेरे प्रति बिना दिखाए प्रेम है ,अपनापन है ,
मगर तुम भी यह क्यों नही समझते,
कि मेरा भी अपना कुछ मन है।,
बेहतरीन भवुक रचना मंजूषा जी.एक एक शब्द अनमोल है
आपके शांत रहने के आदेश ने भावों को हिला दिया…हा हा हा….लाजवाब….बहुत ही लाजवाब भावों से रचित….
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी। यह मेरी लेटेस्ट कविता है। कल की आउटिंग और होम विजिट का निचोड़। रात में भाव आये और सुबह सुबह ही बना कर पब्लिश कर दिया।इतनी अच्छी प्रतिक्रिया मिलेगी आशा नहीं थी। एक बार फिर धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी आपके प्रोत्साहन के लिए बब्बू जी।
आपस की नोक-झोंक और प्रेम को बेहतरीन तरीके से परिभाषित किया है आपने. बेहतरीन रचना.
बहुत धन्य्वाद आपका विजय जी आप्के प्रोत्साहन के लिए.
उम्दा रचना आप की……………….
बहुत बहुत धन्य्वाद आपका मनि जी
It’s beautiful…coming straight from d heart n touching d heart deeply… looking forward to many such thoughts..congrts
बहुत बहुत धन्य्वाद अरच्ना तुम्हारे सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए. हम कवि लोगो के पास सिर्फ दिल ही तो होता है और हम लोग दिल से ही सोचते है
और दिल से ही कविता लिख्ते है. अगर हमारे पास् दिमाग होता भी है तो वह भी दिल् के बस मे होता है.