तुम्हें नहीं मालूम
मैंने तुमसे
बहुत सारी बाते
छिपा कर रखी हैं
बहुत सारी………
जैसे,
रोटियां बनाते वक्त
सबसे गोल रोटी
मैं तुम्हारे लिए रखती हूँ,
तुम्हारे पसंद की सब्जी
मैं कम खाती हूँ
ताकी तुम
ज्यादा खा सको,
तुम्हारे घर से
निकलते वक्त
हर बार मैं ईश्वर से
प्रार्थना करती हूँ कि
तुम सकुशल घर
वापस आओ,
हर झगड़े के बाद
मैं खुद को कोसती हूँ
और हर जनम में
सिर्फ तुम्हारा साथ
मांगती हूँ ।
तुम्हें नहीं मालूम
इसके अलावा भी मैंने
तुमसे बहुत कुछ छिपाया है …
जैसे,
मेरे ह्रदय में
बहुत सारे कमरें हैं
गहरे-गहरे
घोर तम में
डूबे-डूबे
सख्त दरवाजो वाले
जिनमें बहुत सारे
राज बंद हैं
जिन्हें मैं दिखाती नहीं
जिन्हें तुम देखते नहीं ।।
कभी-कभी मैं सोचती हूँ
बातों की गगरी
राजों की गठरी
तुमसे छिपा कर
मैंने छला है तुम्हें,
पर सच क्या है
आखिर छल किसने किया
मैंने कुछ न बता कर
या तुमने कभी भी
कुछ नहीं पूछ कर ।
अलका
अति सुन्दर अलका जी !!
बहुत -बहुत धन्यवाद मैम…………
अलका हमेशा की तरह बेहतरीन. मन के भावों को व्यक्त करने में तुम्हारा कोई सानी नहीं.
बहुत -बहुत धन्यवाद सर…………
अति सुंदर भाव आपके…..अलका जी
बहुत धन्यवाद मनी जी………
अल्काजी….मैंने कभी अपने दिल में ऐसी उथल पुथल होती नहीं देगी जो आपकी इस रचना से हो गयी….नहीं कहना चाहता था पर रहा नहीं गया….मेरे पास शब्द नहीं हैं इस रचना की तारीफ में…. बस इतना कह सकता की आप की कलम हमेशा हमेशा ऐसे भाव ही प्रस्तुत करे जो खुद के साथ औरों को भी बहा ले जाए… जिस भाव में भी लिखें आप….. बेहतरीन…बेमिसाल….wonderful…out of world……जय हो….
शर्मा जी आपकी प्रतिक्रिया के हर शब्द के लिए तहे दिल से बहुत -बहुत धन्यवाद…………
प्रायः सभी नारियों की सोच ऐसी ही होती है जो आपने वर्णन किया. बहुत खूबसूरती से इल्जाम को हटा भी लिया . अति सुंदर…………………….
आपका बहुत -बहुत धन्यवाद…………
ह्रदय की भावनाओ का सम्प्रेषण बड़ा निराला है आपका ………….बहुत खूब अलका !!
बहुत -बहुत धन्यवाद सर…………
क्या बात है……. बहुत सुन्दर….
बहुत -बहुत धन्यवाद………
अति सुंदर .नारी के कोमल मन को दर्शाती है . अलका जी बहुत अछे
बहुत -बहुत धन्यवाद मैम…………..